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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 9

नैतिक निर्णय

(Moral Judgement)

 

प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।

अथवा
नैतिक निर्णय के स्वरूप एवं विषय की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
अथवा
नैतिक निर्णय के विषय की व्याख्या एवं परीक्षण कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. नैतिक निर्णय किसे कहते हैं?
2. नैतिक निर्णय का स्वरूप व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
3. नैतिक निर्णय का स्वरूप क्या है

उत्तर -

परिचय -  नीतिशास्त्र में सर्वाधिक महत्व नैतिक निर्णय (Moral judgement) का है। नीतिशास्त्र विभिन्न कर्मों के विषय में जो निर्णय दिया करता है उसे ही नैतिक निर्णय कहा जाता है। इसीलिए नीतिशास्त्र को नैतिक निर्णयों का विज्ञान भी कहा जाता है। नैतिक निर्णय का अर्थ, स्वरूप एवं विशेषताओं का विवरण निम्नलिखित है-

नैतिक निर्णय का अर्थ

हम जानते हैं कि नीतिशास्त्र में मनुष्य के वर्गों को दो कर्मों में विभक्त किया जाता है। ये वर्ग हैं- क्रमशः ऐच्छिक कर्म तथा अनैच्छिक कर्म। जब हम किसी व्यक्ति के ऐच्छिक कर्म का मूल्यांकन करते हैं तो जो निष्कर्ष निकलता है, उसे नैतिक निर्णय कहा जाता है अर्थात् जब हम किसी व्यक्ति के ऐच्छिक कर्म को नैतिक दृष्टिकोण से उचित अथवा अनुचित, शुभ या अशुभ ठहराते हैं तो यह निर्णय 'नैतिक निर्णय' ही होता है। इस प्रकार किसी पूर्व-निर्धारित नैतिक मानदण्ड के आधार पर किसी ऐच्छिक कर्म के औचित्य या अनौचित्य को दर्शाना ही नैतिक निर्णय है। उदाहरण के लिये, जब हम कहते हैं कि "अपने प्रधानाचार्य के विरुद्ध छात्रों द्वारा आन्दोलन करना अनुचित है" तो यह एक नैतिक निर्णय है। इसी प्रकार "चोरी करना अनुचित है" या "अपाहिजों की सहायता करना उचित है" आदि नैतिक निर्णय हैं। म्यूरलैंड ने नैतिक निर्णय को इन शब्दों में परिभाषित किया है, "यह (नैतिक निर्णय) आचरण के निर्णय से सम्बन्धित है। हम इस प्रकार से आचरण के निर्णय से सम्बन्धित हैं कि यह उचित है या अनुचित है।'

नैतिक निर्णय के अर्थ सम्बन्धी सामान्य परिचय के उपरान्त कहा जा सकता है कि किसी भी नैतिक निर्णय के लिये निम्नलिखित कारकों का होना आवश्यक है- 

(1) ऐच्छिक कर्म होना - नैतिक निर्णय के लिये एक आवश्यक शर्त है कि सम्बन्धित कर्म 'ऐच्छिक कर्म' श्रेणी का है। यदि सम्बन्धित कर्म अनैच्छिक कर्म हो तो उस स्थिति में नैतिक निर्णय हो ही नहीं सकता।

(2) निर्धारित मानदण्ड - नैतिक निर्णय के लिये विषय से सम्बन्धित कोई पूर्व- निर्धारित मानदण्ड भी अवश्य होना चाहिए। निर्धारित मानदण्ड के आधार पर ही नैतिक निर्णय दिया जाता है। यदि कोई स्वीकृत मानदण्ड न हो तो नैतिक निर्णय नहीं दिया जा सकता। 

(3) निर्णायक का होना - नैतिक निर्णय के लिये एक निर्णायक अर्थात् निर्णय देने वाले व्यक्ति का होना आवश्यक है। यह सत्य है कि सदैव ही व्यक्तियों द्वारा ऐच्छिक कर्म सम्पन्न होते रहते हैं तथा नैतिकता के मानदण्ड भी निर्धारित होते हैं परन्तु किसी कर्म विशेष के विषय में नैतिक निर्णय तभी दिया जा सकता है जबकि कोई निर्णायक हो।

(4) विवेकशीलता - नैतिक निर्णय के लिये निर्णायक में विवेकशीलता होनी आवश्यक है। विवेकशीलता द्वारा ही नैतिक निर्णय दिये जाते हैं।

नैतिक निर्णय का स्वरूप एवं विशेषताएँ

नैतिक निर्णय के अर्थ सम्बन्धी विवेचन के उपरान्त इसके स्वरूप एवं विशेषताओं को स्पष्ट किया जा सकता है। नैतिक निर्णय की मुख्य विशेषतायें निम्न वर्णित हैं - 

(1) नियामक निर्णय - नैतिक निर्णय अपने आप में विधायक नहीं बल्कि नियामक (Normative) होते हैं। उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि 'सदैव सत्य बोलना चाहिए' या 'जीवों पर दया करनी चाहिए, तो ये निर्णय नैतिक निर्णय हैं तथा इनका स्वरूप नियामक है।

(2) मूल्यात्मक निर्णय - सामान्य रूप से निर्णयों को दो वर्गों में रखा जाता है। ये वर्ग हैं क्रमशः तथ्यात्मक निर्णय तथा मूल्यात्मक निर्णय। तथ्यात्मक निर्णय वर्णनात्मक होते हैं तथा इन निर्णयों से सम्बन्धित विषय-वस्तु के विषय में क्या? कैसे? आदि का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। मूल्यात्मक निर्णयों में सम्बन्धित विषय-वस्तु के मूल्य का विवरण प्रस्तुत किया जाता है अर्थात् मूल्यों पर आधारित मूल्यांकन होता है। समस्त नैतिक निर्णय मूल्यात्मक होते हैं। नैतिक निर्णयों में आचरण का मूल्यांकन किया जाता है।

(3) नैतिक निर्णय कार्य पर होते हैं - नैतिक निर्णय के अन्तर्गत सम्बन्धित कार्य की अच्छाई या बुराई का निर्णय निर्धारित मापदण्ड के आधार पर होता है। इस प्रकार नैतिक निर्णय किसी कार्य के विषय में नहीं होते बल्कि सम्बन्धित कार्य पर (Upon) होते हैं। इस तथ्य को मैकेन्जी ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, "नैतिक निर्णय का स्वभाव केवल वैसा नहीं है जोकि तर्कशास्त्रीय कहलाने वाले का है। वह केवल किसी विषय में (About) निर्णय नहीं बल्कि किसी पर (Upon) निर्णय है।" 

(4) नैतिक निर्णय अनुमानजन्य होते हैं - नैतिक निर्णय की एक विशेषता यह भी है कि सामान्य रूप से नैतिक निर्णय के लिए सम्बन्धित कार्य की तुलना किसी निर्धारित मापदण्ड से की जाती है तथा देखा जाता है कि वह कर्म सम्बन्धित मापदण्ड के अनुसार है या नहीं। इस प्रकार किसी कर्म पर सम्बन्धित मापदण्ड को लागू करने की क्रिया अनुमान की क्रिया के ही समान होती है। वास्तव में नैतिक निर्णय के अन्तर्गत किसी कर्म विशेष पर नैतिक नियमों को लागू किया जाता है तथा निष्कर्ष प्राप्त किया जाता है। इस रूप में नैतिक निर्णय की क्रिया अनुमान से अधिक स्पष्ट होती है। यहाँ एक अन्य बात भी स्पष्ट कर देनी आवश्यक है कि अधिकांश नैतिक निर्णय अन्तः अनुभूति ( Intution) से ही तुरन्त हो जाया करते हैं। इस विशेषता को ध्यान में रखते हुए नैतिक निर्णय को विचारजन्य न मानकर अनुभूतिजन्य माना जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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